इन्दोरी - मराठी ( article in Hindi)




                    इन्दोरी - मराठी






Despite ruling Indore for over 200 years, Hokars never imposed their language (Marathi) on Indore. However, as a part of cultural exchange among commoners, the lingua franca of Indore, the Indori Hindi, on its own adopted Marathi words. An interesting research on such words and phrases.




(On the occasion of Gudipadwa ( 2016) , this article has also been published in leading Hindi newspaper "Naidunia" ( now part of Jagaran group )

 http://naiduniaepaper.jagran.com/Article_detail.aspx?id=27505&boxid=17378&ed_date=2016-4-08&ed_code=74&ed_page=20 

and it has also been published in leading Hindi web portal Webdunia

http://hindi.webdunia.com/madhya-pradesh/indore-indori-marathi-indore-city-marathi-language-116040700097_1.html
)




देश के पिछले 1000 साल के इतिहास में ब्रिटिश राज  और मुगल राज  के अलावा अगर "साम्राज्य " शब्द का प्रयोग किसी शासनकाल के लिए किया जा सकता है तो उसके हक़दार सिर्फ मराठा हैं.  मराठा वंश के राज्य  की परिधि और उनके राज की अवधि, दोनों ही  उन्हें "साम्राज्य " की उपाधि नवाज़ा करती हैं। 

 मराठा साम्राज्य के  गौरवशाली इतिहास में इंदौर शहर का अपना एक अलग स्थान है. इंदौर के मराठा शासक,  होल्कर वंश ने अपने 200 से अधिक वर्ष के  राज में इंदौर को एक औद्योगिक शहर के रूप में स्थापित किया और साथ ही शहर की प्रथम मास्टर प्लानिंग  मशहूर अर्बन प्लानर सर पैट्रिक गेडिस से करवाई थी. नतीजतन इंदौर की कपड़ा मिलें मुंबई की टेक्सटाइल मिलों  को  टक्कर देती थी। 

लेकिन इतने लम्बे शासनकाल में होल्कर वंश ने सिर्फ इंदौर पर राज किया, इंदौरवासियों पर नहीं,  उनकी   भावनाओं  पर नहीं,  और ना ही उनकी भाषा  पर.  विश्व इतिहास में शायद ही कोई ऐसा वंश होगा जिससे इतने लम्बे शासनकाल  के पश्चात भी लोगों पर अपनी भाषा नहीं थोपी। और अगर यह होल्कर की महानता थी तो उन्हें  उसका मीठा फल भी मिला.  सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी बोल-चाल में मराठी भाषा के कुछ शब्द इन्दोरी भाषा ने  ऐसे अपना लिए कि वे शब्द अब इन्दोरी भाषा का  हिस्सा बन चुके हैं. गुढीपाडवा  के इस पावन पर्व पर आइए इन इन्दोरी-मराठी शब्दों का आस्वादन करें. 


थोड़ी खट्टी और थोड़े तीखे  स्वाद वाली 'कढ़ी' से  मराठी भाषियों का विशेष  प्रेम होता  है, इसी प्रेम को मद्देनज़र रखते हुए  मराठी  भाषियों को इंदौर में स्नेहवश   'कढ़ी भाऊ' कहने  की प्रथा है।  और गुढीपाडवा की प्रथा है कि अपने घर के बाहर  या गच्छी पर गुढी की स्थापना करना ।  'गच्छी' शब्द का अर्थ शायद  उत्तर भारतीयों  को समझ में  न आये पर इंदौरवासियों के लिए ये एक जाना-पहचाना शब्द है  । और  अगर  मैं  कहूं कि,  'गच्छी' शब्द मूलतः मराठी भाषा  ( मराठी : गच्ची ) का  है,  तो  एक बहुत बड़ा वार्तालाप शुरू हो जाएगा 

क्योकि 'गच्ची'  हिंदी शब्द नहीं बल्कि मराठी है यह सुनकर आप कहेंगे , "भिया, आप भल्ती बात मत करो ।"

जिस पर मेरा  जवाब होगा ," भाईसाहब, गच्ची  तो छोडिए, 'भल्ता'  शब्द ( अर्थ : ऊटपटांग )  का प्रवेश भी   इन्दोरी भाषा  में मराठी द्वार से हुआ है "   

" तो भिया, हमें क्या  'गरज' थी  इन मराठी शब्दों को इन्दोरी में लाने की   ?" यह आपका तार्किक प्रश्न होगा।

" ठीक है, मैं पता  लगाने  की कोशिश करता हूँ कि ये 'कारस्थान' किसकी है।  पर ये सुनकर आप गरजना मत कि , इन्दोरी शब्द  'गरज' (ज़रुरत ) और कारस्थान (ज़ुर्रत, दुस्साहस  )  भी मराठी  भाषा की उपज  हैं।  "

एक आक्रामक इन्दोरी के रूप में आपका  प्रहार होगा,  "हओ,  अब तो तुम कह  दो कि हमें  पोहे बनाना और  गुल्ली-डंडा  खेलना भी मराठी भाषियों ने ही सिखाया है।  "

"  पोहे की बात तो हम बाद में करेंगे,  पर पहली  बात तो ये  है कि  'हओ" शब्द  का उद्गम मराठी  के "हो (अर्थ : हाँ )"  से है और गुल्ली-डंडा तो नहीं पर हाँ अगर बचपन में गुल्ली-डंडे के खेल में अगर आपने 'सौ का टोला' खेला है तो ये जान लीजिए कि 'टोला' शब्द  ( अर्थ :  शॉट) सौ प्रतिशत मराठी शब्द है. पूरी हिंदी डिक्शनरी भी टटोल लेंगे तब भी 'टोला' शब्द आपको कहीं नहीं मिलेगा और ना  ही मिलेगा आपको 'राजबाड़ा' "


इतना सुनने के बाद फिर अगर 'खिजुवा' के आप कहेंगे कि भिया जितने भी मराठी शब्द इन्दोरी में घुस चुके हैं उन्हें एक बार एक 'सलग' बोल  दिया  जाए। 

 तो ये जानकर आपको आश्चर्य होगा कि 'खिजुवाना ' ( अर्थ : झल्लाना, शर्मिंदा होना ) का दोस्ताना   मराठी शब्द 'खिजवणे' से है और साथ ही  'सलग ' (अर्थ : एक साथ,  लगातार ) मराठी 'सलग' का साथीदार है. और शब्दों के अलावा अगर मराठी भाषियों द्वारा इंदौर के लिए किए गए  योगदान की बात करें तो ये पन्ना भी नहीं 'पुरेगा' । [ बहरहाल, 'पुरेगा' (अर्थ : पर्याप्त  मात्रा में   न  होना ) भी मराठी 'पुरेल' का ही पूरक है ]  . और अब रही बात पोहे की ; तो अगर मैं कहूं कि पोहे भी इंदौरियों को  मराठियों की देन है, तो आप तो क्या, अधिकतर इंदौरी  यही कहेंगे, "भिया, अब तो आप उल्टी गंगा बहा रहे हो, पोहे तो अपने इंदौर के ही हैं. उसपर सिर्फ इंदौरियों का एकाधिकार है."

  और क्यों न कहें,क्योंकि जो दिखता है वह इसी बात का प्रतीक है।    इंदौर के पोहे में जो स्वाद है वह महाराष्ट्र के पोहे में नहीं मिलता है, इसलिए पोहे का मूलस्थान इंदौर ही होना चाहिए . दरअसल बात यह है कि इंदौरियों ने न सिर्फ महाराष्ट्र के पोहे को अपना लिया वरन  अपने रंग में ढाल कर उसे कहीं ज़्यादा स्वादिष्ट बना दिया  और इसलिए पोहा अब इंदौर का अभिन्न अंग बन गया है।   सही मायने में  तो पोहा इंदौर शहर का अब  ब्रांड एम्बेसडर बन चुका है . मराठी भाषियों को  इससे बड़ा रिटर्न गिफ्ट और  क्या मिल सकता है कि  इंदौरवासियों  ने उनके पोहे को अपना  ब्रांड एम्बेसडर तक ही सीमित नहीं रखा  बल्कि उस पर  आइटम नंबर  बनाकर उसे  विश्व भर में वायरल भी कर दिया ।  

 इंदौरवासियों के इतने प्रेमरंग में घुलने के बाद जितना इन्दोरी, पोहा हो गया है उतना ही इन्दोरी, इंदौर का हर मराठी भाषी हो गया है.  गुढीपाडवाच्या निमित्ताने सर्वांना नूतन वर्षाभिनंदन. 

Comments

  1. This is fabulous.... Deepesh Sirji, your articles whether on real estate, economy or indori.... are really great reads.
    It's honour to know you!

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  2. Dear Doctor Salgia.
    Very unfair!!! You have made me read so much Hindi in my old age!
    excellent article. Well-researched. Neatly written.
    You have done justice to a very interesting topic. Please expand and formally obtain your PhD.
    And talking of "poha", unless you let me have some Indori Poha, I cannot comment upon your claim.
    regards, Zafar IQbal.

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